इन्तज़ार

लौट जाओ तुम्हें कोई अपना प्यार करता होगा
देख मेरी तरह आईने से इज़हार करता होगा

इक साया सा आता है तेरा जो खफ़ा खफ़ा सा लगता है
जाने तू किस बात का मुझसे ख़ुमार करता होगा

ये किस बात का असर मेरी धड़कन तेज़ हो जाती है
आजकल तेरे दिल का काम मेरा दिल लगातार करता होगा

ये वो जितनी भी हैं सब खुशियां तेरे जाने से चली गईं
फिर भी ख़ामोशी में दिल तो तेरा दीदार करता होगा

मैं कोशिश लाखों दफ़ा कर चुका हूं वो दिन भूल जाऊं
हो सकता शायद है ऐसी ही कोशिशें मेरा यार करता होगा

इक उम्मीद है सी नज़र आती है तेरे लौट आने की
बस इसी आस में मेरा दिल तुझे इंतज़ार करता होगा

अभी तक सब लम्हों को मैंने क़ैद करके रखा है
तुझे कुछ याद नहीं क्यों इस बात से तू इनकार करता होगा

ख़ुदा  भी तुझे बना कर तुझे बदलना चाहता है
देख के तेरी आंखों का क्या बयां वार-ए-दुशवार करता होगा

उधार नहीं देता

यहां के अजीब लोग कोई एतबार नहीं देता
मैं   खुशियां   बांट  देता  हूं उधार नहीं  देता

मेरी जिंदगी ख़त्म होते होते रह जाती है
मैं किसी को रुकने का इंतजार नहीं देता

मेरे ख़्याल और ज़हन में कोई तो आए
वही  क्यूं  आता  है  जो प्यार नहीं देता

ख़्वाब मेरे सिमटे और सिमटते गए ख़त्म हो गए
आख़िरी उम्मीद तक मैं आंखों से समंदर नहीं देता

तुझसे मिलने की शिकन मेरे दिल में रही
वरना यूं नींद में तेरा नाम पुकार नहीं देता

मुझे मालूम है मेरा इश्क़ एक तरफ़ा ही रहेगा
मैं खामखा सबको अपने दिल से गुज़ार नहीं देता

हम ने इक मुक़ाम की ख़ातिर सब क़ुर्बान कर दिया
कौन से दिल में रखें ख्वाहिश दिल बेकार नहीं देता

कोई तो हो जो मेरे साथ मिलकर इक घरौंदा बनाए
मग़र ख़ुदा ज़ालिम है बड़ा मुझे कोई यार नहीं देता

कुछ अनकहा-2

अब थक गया हूं मैं और ख़ुद की वक़ालत नहीं कर सकता
मेरे भरोसे मत रह दिल अब मैं तेरी हिफाज़त नहीं कर सकता

हुए थे जो मेरे एहसास मैंने बड़े हिफाज़त से सज़ा रखे हैं
मैं लिखकर दिखा सकता हूं मग़र बात नहीं कर सकता

कहने को कुछ बाकी नहीं छोड़ा हमनें वैसे
मैं हर किसी के सामने उसकी शिकायत नहीं कर सकता

मेरे अपने ही लोग बहुत अजीबोगरीब पेश आ रहे हैं
कोई प्यार करता नहीं और मैं बग़ावत नहीं कर सकता

आज ही तो मैं इक अरसे बाद घर लौट कर आया हूं
मेरी मां का ख्याल है मैं तेरी याद में बरसात नहीं कर सकता

इतना आसां कहां किसी को ज़िन्दगी से जुदा कर देना
मैं इंतज़ार कर सकता हूं मग़र दिन को रात नहीं कर सकता

Written by :- Gaurav Singh

नज़र

मेरी आंखों को किसकी नज़र लग गई
उसके दिल में भी कोई है हमें ख़बर लग गई

इक ज़िंदगी और मिले ऐसी दुआ नहीं चाहिए
कैसे उभरे इस ग़म से इसमें ज़िंदगी ज़हर लग गई

नूर तक हमें देखने की ख्वाहिशें बहोत थीं मग़र
आसमां  में  देखते  रहे  और  सहर  लग  गई

आख़िरी जवाब  से हमनें दिल ये अलग कर दिया
दिल बंद ताबूत में कर लिया जैसे कबर लग गई

कुछ नया

अग़र ज़िंदगी में कुछ नया न होता
पुराना हमारा था वो  गया न होता

अब उसे अब की तरहा दूर करना है
अच्छा होता जो खुद को दरिया में डुबाया न होता

इतना भी क्या इख्तियार करना किसी पे
बच जाते हम अग़र दिल उसे दिखाया न होता

हमनें तो हर लम्हा उसकी ख्वाहिशें पूरी की
हम मतलबी होते तो आसूं बहाया न होता

कुछ गलतियां  हुई चलो हो गई, हम अगर
उसकी इबादत कम करते तो रुलाया न होता

कुछ अनकहा

अग़र ज़िंदगी में कुछ नया न होता
पुराना हमारा था वो  गया न होता

अब उसे अब की तरहा दूर करना है
अच्छा होता जो खुद को दरिया में डुबाया न होता

इतना भी क्या इख्तियार करना किसी पे
बच जाते हम अग़र दिल उसे दिखाया न होता

हमनें तो हर लम्हा उसकी ख्वाहिशें पूरी की
हम मतलबी होते तो आसूं बहाया न होता

कुछ गलतियां  हुई चलो हो गई, हम अगर
उसकी इबादत कम करते तो रुलाया न होता

ज़रूरी है क्या?

मुझे मुशकिलों में डालना ज़रूरी है क्या
मेरे ख्वाबों का टूट जाना ज़रूरी है क्या

कुछ हालात तुम खुद ही समझ लिया करो
तमाम बातों का बताना ज़रुरी है क्या

तुम थोड़ा तो करो यकीं मेरी सुर्ख आंखों का
तुम्हें आंखों में काजल लगाना ज़रूरी है क्या

ये रास्ते डूबे-डूबे नज़र आ रहे पानी
हद से ज़्यादा तुम्हें बरसाना ज़रूरी है क्या

मैं रस्में-ए-अदावत की कोशिशें कर रहा
तुम्हें दोस्ती याद दिलाना ज़रूरी है क्या

मेरी ख़ामोशी अब कुछ यूं ही बयां होगी
लफ़्ज़ सभी को समझ आना ज़रूरी है क्या

कुछ ठीक गुज़र रही है मेरी ज़िंदगी
खामखाँ तुम्हें अंदाज़ा लगाना ज़रूरी है क्या

सुकून मिल जाए तुम ज़िंदगी मिले तो कभी
हमें देखते ही रास्ता बदलना ज़रूरी है क्या

रास न आए वो कुछ अजीब लोग मुझे
मेरा भी सबको रास आना ज़रूरी है क्या

Tasveer

किसी के सहारे ज़िंदगी कट रही है
धूप  इतनी  तेज़  क्यों  पड़  रही है

किसी के हिस्से का कौन ले जाएगा
घर घर में ये ईंट क्यूं  बट रही है

इतना भी छोटा नहीं मेरा आशियां
पल पल तेरे लिए क़िस्मत क्यूं लड़ रही है

तेरी एक झलक तक मकबूल नहीं
तेरी तस्वीर आँखों में ही क्यूं तड़प रही है

कुछ नया

अब ऐसी ख़ामोशी क्या हुई ज़माने में
लोग  घबरा  जाते  हैं  सच  बताने  में

अब यूं मुसलसल कौन हमसे बातें करे
हमें कहां देर लगती है अश्क बहाने में

होगी राहत जो कोई अब(पानी) की बात करे
नहीं तो देर कहां लगती है आग लगाने में

वो भी ज़मीं पर आ गिरा बदनसीब
सदियां बीत गई जिसे पंख लगाने में

ये कैसा बेदर्द दौर आया ज़िंदगी का
सब कुछ सीख गए इबरतखाने में

ये होश में भी बेहूदगी आ गयी हमें
वर्ना देर कहां लगती थी प्यास बुझाने में

रूहानियत तो आदत ही कुछ ऐसी है
हाथ ख़ुदा का ही है हमें नायाब बनाने में

ज़रूरी कहां तुम रोज़ राबता ढूंढो
सुकून तुम्हें भी मिलेगा कहीं ठहर जाने में

देख लेंगें जो भी असर होगा उसकी याद का
रात लग ही जाती है सुब फिर से आने में

कुछ आदतें

खामखां रोने की आदत अब छूट जानी चाहिए
रिश्तों में जो बनी दीवारें अब टूट जानी चाहिए

बातें जोड़कर हमनें एक कुछ नया बनाया है
वक़्त पर काम न आए दोस्ती अब टूट जानी चाहिए

ये सब लोग भी अपने हिसाब से चलते हैं
वक़्त से न चले वो घड़ी अब टूट जानी चाहिए

मेरे ज़ज़्बात यहीं कैसे रुक जाएं गुज़ारिश है
तुम्हारी सब पुरानी कसमें अब टूट जानी चाहिए

इश्क़ के नाम पर उसे याद क्यूं करते हो
उसकी तस्वीर पुरानी अब टूट जानी चाहिए

बड़े शान से कुछ लोग दीवारों पर नाम लिख आते
हैं वो दीवारें जूठी हो गयी अब टूट जानी चाहिए

फरियाद हमसे भी करे कोई अपनी चाहत की
सब नाराज़ हैं हमसे ज़िद अब टूट जानी चाहिए

मेरा यकीं जवाब देने लगा है बाकी थी
मेरी आख़िरी उम्मीद अब टूट जानी चाहिए

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