जाना नहीं…

हमें इश्क़ है उनसे कहना भी नहीं है
उनके बिन जीना भी नहीं है
खुद तो परेशान रहते हैं हम मग़र
उनकी परेशानी में रहना भी नहीं है

वो सामने दिखते ही रास्ता बदल लिया करते हैं
अब हमें भी उनके रास्ते में भी जाना नहीं है
अंधेरे में खोजा करते थे उन्हें
आज वो आफताब लिये खड़े हैं करीब उनके जाना भी नहीं है

वो काफी हसमुख हसीं हुआ करते थे
जब जंग में इश्क़ की हम हुआ करते थे
बहोत दलीलें दी हमनें हसरतें हयात की
अब उनके गुनाह-ऐ-गुलशन में जाना नहीं है

दिल तो चाहता है गुलाम बना लूं उन्हें
पर ज़मीर में दस्तूर हम भी रखते हैं
उल्फ़त तो दिख गयी हमें भी दिल में उनके
अब उल्फ़त के साये में भी जाना नहीं है

By:- Gaurav Singh
Blog link:- https://gauravpoetryblog.wordpress.com


मेरा अर्श।

आहिस्ता आना तुम आग़ोश मे भर लूं तुम्हें
मेरे जो अल्फ़ाज़ हैं उसमें अश्क़ों का अर्श है

थोड़ा सा पानी ले आना
मेरे जो अल्फ़ाज़ हैं उसमें आतिश का अर्श है

एहतियात ईमानदारी करना तुम
हयात तो हमारे ज़माने बहोत हैं

मिलकर हमसे खेरियत पूछ लेना
मेरे लबों की कशिश में उल्फ़त का अर्श है

ज़र्रा-ज़र्रा कहता है हमसे वो तक़दीर में नहीं
मैंने कहा
नाज़ ह हमें अपनी नज़ाकत पर
उसके लिये पाकीज़ा इश्क़ का अर्श है

By:- Gaurav Singh
Blog link:- https://gauravpoetryblog.wordpress.com

देखा है कभी…

सबका हाल पूछते हो
हाल माँ का पूछा है कभी…
पैरों सबके में गिर जाते हो
पापा के पैरों को छुआ है कभी…

दूसरों के दिल में जगह बना रहे हो
अपने दिल को खाली किया है कभी…
अपनी पसंद को खोज रहे हो
तुम किसकी पसंद हो पूछा है कभी…

इतने नादां तो तुम भी नहीं
वो बार-बार ठुकराते है तुम्हें…
क्या पागल बन बैठे हो
किसी को भी अपना समझ लेते हो…

By:- Gaurav Singh
Blog link:- https://gauravpoetryblog.wordpress.com

ऐ आसमां तू मुझे कह रहा है, तेरे हाथ नहीं आऊंगा
ज़िद्दी तो में भी इतना हूं, तुझे छू कर ही दिखाऊंगा
तू दूर बेशक होगा, मगर नज़रों से  नहीं
तू खूबसूरत बेशक होगा, उसके जैसा नहीं।

Teri yadein

ये जो खामोशी लबों की है कुछ गलत आई है
पर मैंने तो तुझे सही चुना था।

ये जो हवाएं हैं अपने साथ धूल ले आई है
मैंने बंद आंखे की और तेरी तस्वीरे पाई है।

लोंगो ने दर्द की नफ़्ज़ पकड़ ली है मेरी
कितना भुलाऊँ तुझे याद दिला ही देते हैं।

पीपल की जड़ों सा जकड़ लिया तेरी यादोँ ने
उखाड़ भी दे तो ये ज़ख्म कौन भरेगा।

बहोत दुख होता है जब प्यास भी लगी हो
और समंदर भी पास हो।

आ ज़मीं पर लिख दूँ नाम तेरा-मेरा
हाथों की लकीरों मे अगर न हो।

तेरा यादों से निकलना मुश्किल तो है
मग़र तुझे इसमें काबिलियत हासिल है

चलते-चलते रुक जाते हैं मेरे कदम
पीछे से तेरी आवाज़ सुनाई देती है

ग़ुलाम-ए-इश्क़ बना लूं तुझे
तेरे लिये तैयार ये शीशे का जाल है

दिन में बड़े होशियार बनते हैं ये चांद-सितारे
निशा होते ही ख़ुद आ जाया करते हैं

By:- Gaurav Singh

क्या कहूं

कुसूर इतना है बस मेरा मैं बेक़सूर था
सज़ाएं इतनी दी उसने मैं खुद को मुज़रिम मान बैठा…

लिबाज़ में दोस्त के वो आता था
रिवाज़ भी दुश्मनी का वो क्या खूब निभाता था…

दुःखों के अलावा उसने दिया क्या
जाते-जाते मेरी जान का सौदा भी कर गया वो…

कुछ कम ही समझा करता था मैं खुद को
वो खामखाँ उलझा कर चला गया…

कोशिशें काफ़ी की मैंने जुड़ जाने की
वो है कि कांच की तरह तोड़ता रहा…

By:- Gaurav Singh

क्या कहूं

कुसूर इतना है बस मेरा मैं बेक़सूर था
सज़ाएं इतनी दी उसने मैं खुद को मुज़रिम मान बैठा…

लिबाज़ में दोस्त के वो आता था
रिवाज़ भी दुश्मनी का वो क्या खूब निभाता था…

दुःखों के अलावा उसने दिया क्या
जाते-जाते मेरी जान का सौदा भी कर गया वो…

कुछ कम ही समझा करता था मैं खुद को
वो खामखाँ उलझा कर चला गया…

कोशिशें काफ़ी की मैंने जुड़ जाने की
वो है कि कांच की तरह तोड़ता रहा…

By:- Gaurav Singh

किताब

दूसरों को समझने की कोशिश करता हूं
बिन पैरों के ज़मीन पर रेंगने की कोशिश करता हूं
आखिर समझा लोगों ने क्या मुझे
बस यही समझने की कोशिश करता हूं…

देखा है मैंने ज़ुबां पे ज़हर लोगों के
ज़हर ये पीने की कोशिश करता हूं
दिल के पास जा रुकी मेरी आवाज़ उनके
दिल तक जाने की क़ोशिश बार-बार करता हूं…

एक ख्वाब आया उम्मीदों का
उम्मीदें अक्सर मैं लोगों से कम ही करता हूं
इस बार कुछ नया करता हूं
तुम्हारे लिए उम्मीदों की किताब तैयार करता हूं…

By:- Gaurav Singh

Design a site like this with WordPress.com
Get started