जाना नहीं…

हमें इश्क़ है उनसे कहना भी नहीं हैउनके बिन जीना भी नहीं हैखुद तो परेशान रहते हैं हम मग़रउनकी परेशानी में रहना भी नहीं है वो सामने दिखते ही रास्ता बदल लिया करते हैंअब हमें भी उनके रास्ते में भी जाना नहीं हैअंधेरे में खोजा करते थे उन्हेंआज वो आफताब लिये खड़े हैं करीब उनकेContinue reading “जाना नहीं…”

मेरा अर्श।

आहिस्ता आना तुम आग़ोश मे भर लूं तुम्हेंमेरे जो अल्फ़ाज़ हैं उसमें अश्क़ों का अर्श है थोड़ा सा पानी ले आनामेरे जो अल्फ़ाज़ हैं उसमें आतिश का अर्श है एहतियात ईमानदारी करना तुमहयात तो हमारे ज़माने बहोत हैं मिलकर हमसे खेरियत पूछ लेनामेरे लबों की कशिश में उल्फ़त का अर्श है ज़र्रा-ज़र्रा कहता है हमसेContinue reading “मेरा अर्श।”

देखा है कभी…

सबका हाल पूछते होहाल माँ का पूछा है कभी…पैरों सबके में गिर जाते होपापा के पैरों को छुआ है कभी… दूसरों के दिल में जगह बना रहे होअपने दिल को खाली किया है कभी…अपनी पसंद को खोज रहे होतुम किसकी पसंद हो पूछा है कभी… इतने नादां तो तुम भी नहींवो बार-बार ठुकराते है तुम्हें…क्याContinue reading “देखा है कभी…”

ऐ आसमां तू मुझे कह रहा है, तेरे हाथ नहीं आऊंगाज़िद्दी तो में भी इतना हूं, तुझे छू कर ही दिखाऊंगातू दूर बेशक होगा, मगर नज़रों से  नहींतू खूबसूरत बेशक होगा, उसके जैसा नहीं।

Teri yadein

ये जो खामोशी लबों की है कुछ गलत आई हैपर मैंने तो तुझे सही चुना था। ये जो हवाएं हैं अपने साथ धूल ले आई हैमैंने बंद आंखे की और तेरी तस्वीरे पाई है। लोंगो ने दर्द की नफ़्ज़ पकड़ ली है मेरीकितना भुलाऊँ तुझे याद दिला ही देते हैं। पीपल की जड़ों सा जकड़Continue reading “Teri yadein”

आ ज़मीं पर लिख दूँ नाम तेरा-मेराहाथों की लकीरों मे अगर न हो। तेरा यादों से निकलना मुश्किल तो हैमग़र तुझे इसमें काबिलियत हासिल है चलते-चलते रुक जाते हैं मेरे कदमपीछे से तेरी आवाज़ सुनाई देती है ग़ुलाम-ए-इश्क़ बना लूं तुझेतेरे लिये तैयार ये शीशे का जाल है दिन में बड़े होशियार बनते हैं येContinue reading

क्या कहूं

कुसूर इतना है बस मेरा मैं बेक़सूर थासज़ाएं इतनी दी उसने मैं खुद को मुज़रिम मान बैठा… लिबाज़ में दोस्त के वो आता थारिवाज़ भी दुश्मनी का वो क्या खूब निभाता था… दुःखों के अलावा उसने दिया क्याजाते-जाते मेरी जान का सौदा भी कर गया वो… कुछ कम ही समझा करता था मैं खुद कोवोContinue reading “क्या कहूं”

क्या कहूं

कुसूर इतना है बस मेरा मैं बेक़सूर थासज़ाएं इतनी दी उसने मैं खुद को मुज़रिम मान बैठा… लिबाज़ में दोस्त के वो आता थारिवाज़ भी दुश्मनी का वो क्या खूब निभाता था… दुःखों के अलावा उसने दिया क्याजाते-जाते मेरी जान का सौदा भी कर गया वो… कुछ कम ही समझा करता था मैं खुद कोवोContinue reading “क्या कहूं”

किताब

दूसरों को समझने की कोशिश करता हूंबिन पैरों के ज़मीन पर रेंगने की कोशिश करता हूंआखिर समझा लोगों ने क्या मुझेबस यही समझने की कोशिश करता हूं… देखा है मैंने ज़ुबां पे ज़हर लोगों केज़हर ये पीने की कोशिश करता हूंदिल के पास जा रुकी मेरी आवाज़ उनकेदिल तक जाने की क़ोशिश बार-बार करता हूं…Continue reading “किताब”

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