अग़र ज़िंदगी में कुछ नया न होता
पुराना हमारा था वो गया न होता
अब उसे अब की तरहा दूर करना है
अच्छा होता जो खुद को दरिया में डुबाया न होता
इतना भी क्या इख्तियार करना किसी पे
बच जाते हम अग़र दिल उसे दिखाया न होता
हमनें तो हर लम्हा उसकी ख्वाहिशें पूरी की
हम मतलबी होते तो आसूं बहाया न होता
कुछ गलतियां हुई चलो हो गई, हम अगर
उसकी इबादत कम करते तो रुलाया न होता