किसी के सहारे ज़िंदगी कट रही है
धूप इतनी तेज़ क्यों पड़ रही है
किसी के हिस्से का कौन ले जाएगा
घर घर में ये ईंट क्यूं बट रही है
इतना भी छोटा नहीं मेरा आशियां
पल पल तेरे लिए क़िस्मत क्यूं लड़ रही है
तेरी एक झलक तक मकबूल नहीं
तेरी तस्वीर आँखों में ही क्यूं तड़प रही है