कुछ आदतें

खामखां रोने की आदत अब छूट जानी चाहिए
रिश्तों में जो बनी दीवारें अब टूट जानी चाहिए

बातें जोड़कर हमनें एक कुछ नया बनाया है
वक़्त पर काम न आए दोस्ती अब टूट जानी चाहिए

ये सब लोग भी अपने हिसाब से चलते हैं
वक़्त से न चले वो घड़ी अब टूट जानी चाहिए

मेरे ज़ज़्बात यहीं कैसे रुक जाएं गुज़ारिश है
तुम्हारी सब पुरानी कसमें अब टूट जानी चाहिए

इश्क़ के नाम पर उसे याद क्यूं करते हो
उसकी तस्वीर पुरानी अब टूट जानी चाहिए

बड़े शान से कुछ लोग दीवारों पर नाम लिख आते
हैं वो दीवारें जूठी हो गयी अब टूट जानी चाहिए

फरियाद हमसे भी करे कोई अपनी चाहत की
सब नाराज़ हैं हमसे ज़िद अब टूट जानी चाहिए

मेरा यकीं जवाब देने लगा है बाकी थी
मेरी आख़िरी उम्मीद अब टूट जानी चाहिए

Published by GAURAV SINGH

Main yhan pr kuch accha likhne ki koshish krta hu abhi tak o bhi maine likha hai vo apne dil se likha hai to ap sb jo bhi yha meri poertry padhe vo zingdi se ise jode or khud ko isme dundhne ki koshosh krein

One thought on “कुछ आदतें

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