बहोत हैं शिक़वे सुनाऊं कैसे, बहोत हैं आंसू छिपाऊं कैसे…2
तेरा दिल तो हंस रहा है, मग़र अपने दिल को चुप करुं कैसे…
समां कुछ बदला-2 सा लग रहा है,पहले वाला लाऊं कैसे…2
मेरी तक़दीर में मौसम-ए-इश्क़ नहीं, वो लकीर बनाऊं कैसे…
जद्दोजहद हो रही दिल-दिमाग की, किसी को ग़लत बताऊं कैसे…2
तू फ़लक बन गयी है, मग़र मैं पंछी खुद को बनाऊं कैसे…
बर्फ सा बन गया हूं पिघल जाता हूं, खुद को बरकरार रखूं कैसे…2
तुझ बिन तो अधूरा हूं मैं, अकेला यूं बह जाऊं कैसे…
आ कर मेरे क़रीब बदन बेहोश कर देना तुम…2
होश में तेरी रूह तक जाऊं कैसे…
By:- Gaurav Singh
Blog:- https://gauravpoetryblog.wordpress.com