बहोत आये अज़नबी साये, मग़र
रूह नही थी सिर्फ बदन आए…2
ख़ुद को अभी तक आजमाया नहीं
सिर्फ ग़रज़ थी जिसको वही आज़माने आए…2
हैरत तो बहोत हुई,मग़र लफ्ज़ मेरे ज़ुबां पर न आए
मोहताज़ जब बन गया उनका, वो जब भी करीब आये फ़ना करने आए…
बहोत आये अज़नबी साये, मग़र
रूह नही थी सिर्फ बदन आए…2
उसके संग जो पल आए बेहतरीन आए
ग़ुज़ारिश थी उनसे बस वो बार-2 आए…2
हसीन गुफ़्तगू होती रहे, ज़िंदगी भर साथ रहें
मग़र वो बेहिस खूब निकले उस दिन के बाद हमसे मिलने भी नही आए…
बहोत आये अज़नबी साये, मग़र
रूह नही थी सिर्फ बदन आए…2
शुक्र है ख़ुदा का, किसी ने ख़ैर की हमारी
वो तो इस उम्मीद में थे, हम पागल बन जाए…2
ज़िंदगी में आते रहेंगें हसीन साये, मग़र
तुझसा कोई बदनसीब न आए….
बहोत आये अज़नबी साये, मग़र
रूह नही थी सिर्फ बदन आए…2
By:-Gaurav Singh
Blog:- https://gauravpoetryblog.wordpress.com