मैं जो ख़ुदग़र्ज़ कोई ढूंढ़ने चला
सबसे ज्यादा वो मुझमें ही मिला
सच बताने पर रुठ जाते हैं लोग
देखा जो खुद को सबसे जूठा मैं ही मिला…
ख़ूब चला हूं कागज़ के पैरों से
मेरे लिये उसने कांच की सड़क बनाई है
बहोत मिले मुझे ज़ख़्मी लोग
मग़र सबसे ज्यादा ज़ख़्मी भी वही मिला…
मैंने कितनी दफा कहा उसे उतर आ गहराई में मेरी
और मुझे भी तुझमे समाने दे
तूने तो समझ लिया है मुझे
अब मुझे भी थोड़ा समझ जाने दे…
By:-Gaurav Singh
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