आ ज़मीं पर लिख दूँ नाम तेरा-मेरा
हाथों की लकीरों मे अगर न हो।
तेरा यादों से निकलना मुश्किल तो है
मग़र तुझे इसमें काबिलियत हासिल है
चलते-चलते रुक जाते हैं मेरे कदम
पीछे से तेरी आवाज़ सुनाई देती है
ग़ुलाम-ए-इश्क़ बना लूं तुझे
तेरे लिये तैयार ये शीशे का जाल है
दिन में बड़े होशियार बनते हैं ये चांद-सितारे
निशा होते ही ख़ुद आ जाया करते हैं
By:- Gaurav Singh